JEE Main और NEET 2020 को लेकर राजनीति और खींचतान बहुत तेज हो गई है। प्रवेश परीक्षाएं हो या ना हो दोनों के अपने-अपने जोखिम है।
v8xnews | Kavya Kaushik | Education:
इस देश में शिक्षण संस्थानों में प्रवेश परीक्षाओं का आयोजन भी राजनीति का मुद्दा बन जाए ऐसा शायद ही कभी हुआ होगा। क्योंकि इसमें मन मुताबिक राजनीतिक मक्खन निकालने के संभावना कम ही रहती है। लेकिन इस बार देश की दो अहम प्रवेश परीक्षाओं जेईई और नीट के आयोजन को लेकर मोदी सरकार और विपक्षी राज्य सरकारों के बीच ठन गई हैं।
इसी बहाने कांग्रेस ने विपक्ष को फिर एक मंच पर लाने का प्रयास नए सिरे से शुरू कर दिया है। विपक्ष की कोशिश है कि केंद्र सरकार इस मुद्दे पर संवेदनशीलता दिखाते हुए झुके तो सत्तापक्ष ने साथ संकेत दे दिए हैं। कि परीक्षा तो होके रहेगी। जिसे जो करना है, कर ले। जून 2020 में होने वाली जेईई और नीट 2020 की परीक्षाएं covid-19 के कारण स्थगित होती रही है। राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एनटीए) द्वारा घोषित कार्यक्रम के अनुसार जेईई की परीक्षाएं 1 से 6 सितंबर तक और नीट 2020 की परीक्षा 13 सितंबर को आयोजित होनी है। इन परीक्षाओं को स्थगित कराने के लिए कुछ विद्यार्थियों और अभिभावकों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन कोर्ट ने 17 अगस्त को अपने फैसले में उनकी याचिका को खारिज कर दिया।
जाहिर है इन दोनों परीक्षाओं का हमारे शिक्षा जगत में बहुत महत्व है। क्योंकि जेईई (मेन) परीक्षा द्वारा आईआईटी व एनआईटी संस्थानों में और नीट द्वारा प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश का मार्ग प्रशस्त होता है। देश के लाखों मध्यम वर्गीय परिवार अपने बच्चों का दाखिला इन नामचीन संस्थानों में हो पाने का सपना देखते हैं। क्योंकि इन संस्थानों में दाखिले का मतलब है।भविष्य में आर्थिक समृद्धि और सामाजिक प्रतिष्ठा के अवसर प्राप्त होना। आज भारत और भारत के बाहर ऐसे हजारों उद्यमी और सीईओ मिल जाएंगे। जो अरबपति बन गए। इनमें से ज्यादातर आईआईटी एनआईटीए एम्स आईआईटीएम आदी ऐसे ब्रांड बन गए हैं। जिसमें पढ़कर कोई भी आसानी से आसमान की ऊंचाइयों को चूम सकता है।
जेईई (मेन )परीक्षा में 9.53 लाख और नीट 2020 में 15.97 लाख विद्यार्थी शामिल हुए हैं। परीक्षाओं को फिर स्थगित कराने के लिए विद्यार्थियों और उनके अभिभावक का तर्क है। कि कोविड-19 का प्रकोप अपने उभार पर है, और रोजाना संक्रमण के 60,000 से अधिक मामले आ रहे हैं। कुल संक्रमित लोगो की संख्या में 32 लाख तक पहुंच गई है। उनका कहना है, कि परीक्षाएं होती है।तो 2500000 विद्यार्थियों और उनके अभिभावक के जान को खतरा बना रहेगा। परीक्षाओं का विरोध करने वाले लोग यह भी कह रहे हैं। कि देश के 11 राज्यों में भयंकर बाढ़ आई हुई है।जिनमें से सैकड़ों लोगों की मौत हो गई है। ऐसी स्थिति में कम से कम 11 राज्यों जैसे:-बिहार, असम, कर्नाटक, राजस्थान और महाराष्ट्र में परीक्षार्थियों का घर से निकलकर परीक्षा केंद्रों तक पहुंचना खतरे से खाली नहीं होगा।
आज सोशल मीडिया का दौर है। जेईई और नीट 2020 की परीक्षाओं का विरोध करना करने वाले विद्यार्थियों ने पिछले सप्ताह ट्विटर पर कई हैशटेग बनाकर 'पोस्टपोन जीनीट' अभियान चलाया जिस पर लाखों ट्वीट पोस्ट किए गए। ट्विटर पर लाखों पोस्ट चलाए जाएं और हमारे राजनेताओं का ध्यान उस पर ना जाए यह तो नामुमकिन है। इसलिए कांग्रेस सहित अन्य दल और मुख्यमंत्री एकजुट हो गए। कुछ अभिभावकों का कहना है, कि कोविड-19 का खतरा तो इतनी जल्दी जाने वाला नहीं है। तो फिर परीक्षाओं को कब तक स्थगित किया जा सकता है। जो परीक्षाएं जून/जुलाई में होती थी। अगर सितंबर 2020 में भी होती है, तो आईआईटी/ एनआईटी और मेडिकल कॉलेजों का नया सत्र नवंबर 2020 से पहले शुरू नहीं हो पाएगा। उनका कहना है कि अगर यह परीक्षाएं 2 माह के लिए फिर से रोक दी जाती है। तो क्या गारंटी है, कि नवंबर 2020 तक कोविड-19 की स्थिति बेहतर हो जाएगी ?
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है। किंतु केंद्र सरकार के सामने दुविधा है। जेईई और नीट 2020 की परीक्षाओं को लेकर चल रही रस्साकशी हमारे वर्तमान मनो स्थिति , सोचने के तरीके और भविष्य के प्रति बढ़ रही आशंकाओं का एक लक्षण है। जिसे COVID-19 ने पैदा किया है। शायद हम यह तय नहीं कर पा रहे हैं, कि कोविड-19 की स्थिति आज ज्यादा खतरनाक है या यह भविष्य में ज्यादा खतरनाक होगी? वैश्विक महामारी ने सभी नीति- निर्माताओं, राजनेताओं, अर्थशास्त्रियों, वैज्ञानिकों और व्यवस्था जगत के नेताओं को भविष्य के बारे में कोई भी भविष्यवाणी करने या स्पष्ट पूर्वनुमान लगाने के मामले में लाचार बना दिया है। परीक्षा स्थगन की मांग करने वाले लोग यही सोचते होंगे। कि शायद दो महीना बाद कोविड-19 की स्थिति कुछ बेहतर हो जाए। वह लोग कैरियर और जिंदगी के बीच दूसरा विकल्प चुन रहे हैं, यानी उनके लिए करियर उतना ही महत्वपूर्ण नहीं है, जितनी जिंदगी हैं।
छात्रों के कैरियर और जीवन को बचाने की दुविधा हमारे सामने आई है। हमें दोनों को बचाना है। किंतु आज के हालात में करियर से ज्यादा जीवन को बचाने की चिंता करनी चाहिए। लेकिन हमें कोई ना कोई तो बीच का रास्ता निकालना होगा। फिलहाल केंद्र सरकार फैसला करें। खतरा तो हर हाल में है,और इसमें राजनीतिक फायदा और नुकसान भी देखा जाएगा।
Report By :- Kavya Kaushik